जम्मू एवं कश्मीर राज्य में स्थित बाबा अमरनाथ जी की यात्रा न केवल भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है, बल्कि संसार के प्रत्येक स्थान से इसके दर्शनों के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु प्रतिवर्ष यहां पहुंचते हैं। बेशक आतंकवादियों द्वारा धमकी दी गई हो या फिर मौसम कितना ही खराब क्यों न हो, लेकिन श्रद्धालुओं का जज्बा कोई डिगा नहीं पाता है। बाबा अमरनाथ जी तक अत्यन्त दुर्गम मार्गों से होकर पहुंचा जाता है। वहां बर्फ से निर्मित शिवलिंग, जो कि रक्षाबन्धन के दिन पूर्ण रूप धारण करता है, उसके दर्शन का विशेष महत्व है।
जम्मू-कश्मीर की सुरम्य पर्वत श्रंृखला में 13500 फुट की ऊंचाई पर आदि-अनादि काल से भगवान शिव हिमलिंग के रूप में श्री अमरनाथ गुफा में विराजमान हैं। श्रावण मास की पूर्णिमा को इसके दर्शन करने का विशेष महत्व है क्योंकि इस स्थान पर भगवान शंकर ने मां पार्वती को भगवान राम के पावन चरित्र की अमर कथा सुनाई थी। इसलिए यहां पर भगवान शिव बाबा अमरनाथ के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस कथा को एक कबूतर के जोड़े ने भी सुना था और ऐसी मान्यता है कि वह जोड़ा भी अमर है, आज भी इस जोड़े के दर्शन कर भक्तजन अपने आप को सौभाग्यशाली मानते हैं।
यह यात्रा देश की कठिन यात्राओं में से एक है। श्री अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं जिनमें एक चंदनबाड़ी से 35 किलोमीटर पैदल मार्ग का रास्ता है जो अत्यंत ही कठिन है। यह बीच-बीच में बहुत संकरा भी है। बर्फ के ग्लेशियर भी आते हैं, नदी पार कर दो दिन में तीर्थयात्री पावन गुफा पर पहुंचते हैं। वहीं दूसरा रास्ता बालटाल से जाता है, जहां से अमरनाथ गुफा जाने के लिए 12 किलोमीटर का ग्लेशियरों से भरा पैदल मार्ग है, जो अत्यंत कठिन होने के साथ-साथ खतरनाक भी है।
श्री अमरनाथ यात्रा हमेशा विवादों में घिरी रही है। कभी आतंकवादियों ने तो कभी अलगाववादियों ने इस यात्रा में बाधा डालने की कोशिश की है। कभी पर्यावरण के नाम पर तो कभी प्रदूषण के नाम पर इस यात्रा में बाधा डालने का प्रयास किया जाता रहा है। श्री अमरनाथ यात्रा शुरू होने से पहले ही अलगाववादी कश्मीर में इस तरह का माहौल बनाना शुरू करते आए हैं ताकि देश के अन्य हिस्सों में यह संदेश जाए कि यात्रा करना सुरक्षित नहीं है और कम से कम यात्री यात्रा पर पहुंच सकें। श्री अमरनाथ यात्रा आंदोलन 2008 इसका प्रमुख उदाहरण है जिसमें न केवल अलगावादियों, बल्कि कश्मीर मूल के राजनीतिक दलों ने भी इसका खुलकर विरोध किया था। हर वर्ष इस यात्रा को प्रभावित करने के उद्देश्य से कश्मीर में ऐसा माहौल बनाया जाता है ताकि यात्रा पर आने वाले यात्रियों को प्रभावित किया जा सके।
श्री अमरनाथ यात्रा 2015 में सरकारी व श्राइन बोर्ड के तौर पर कुछ परिवर्तन देखने को जरूर मिल रहे हैं। इस वर्ष यात्रा में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। सेना, सीआरपीएफ, पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेंसियों की तैनाती इस तरह से की गई है कि सुरक्षा में किसी प्रकार की चूक न रह सके। यात्रियों की सुविधा व्यवस्थाओं में भी वृद्धि हुई है, लेकिन विश्व प्रसिद्ध यात्रा होने के कारण बड़ी संख्या में जम्मू पहुंच रहे यात्रियों को फिर भी कई परिशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह इस कदर है कि पहले सप्ताह में ही बाबा के दर्शन करने वाले यात्रियों की संख्या एक लाख से पार पहुंच गई।
पंजीकरण में श्रद्घालुओं को हो रही है दिक्कत
बड़ी संख्या में जम्मू पहुंच रहे श्रद्धालुओं का वर्तमान में पंजीकरण नहीं हो पाने से वे काफी निराश व हताश हैं। पंजीकरण के लिए श्रद्धालुओं की संख्या में दिन-प्रतिदिन वृद्धि दर्ज की जा रही हैं। 2000 से 3000 तक श्रद्धालु प्रतिदिन पंजीकरण करवा रहे हैं, किन्तु हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं जिसके चलते पंजीकरण कोटा कम पड़ रहा है। श्राइन बोर्ड सुरक्षा के लिहाज से प्रतिदिन बालटाल व पहलगाम आधार शिविर से 7500-7500 श्रद्धालुओं को ही यात्रा पर रवाना करता है। ऐसे में यदि एक दिन के लिए 12000 श्रद्धालुओं का पंजीकरण पहले हो चुका है तो फिर शेष तीन हजार का पंजीकरण होगा। पंजीकरण दैनिक कोटे की सीमा पूर्ण रूप से पहले हो चुके पंजीकरण पर निर्भर करती है। यह संख्या हर दिन बढ़ती-घटती रहती है। पंजीकरण के लिए जम्मू हॉट वैष्णवी धाम व सरस्वती धाम पर केन्द्र बनाये गए हैं। यात्रियों की संख्या में वृद्धि होने से पंजीकरण केन्द्रों की कमी महसूस की जा ही है जिसके चलते पंजीकरण करने की होड़ मच गई है। तीनों पंजीकरण केन्द्रों पर लम्बी-लम्बी कतारें देखने को मिल रही हैं और सरकार व बोर्ड के खिलाफ श्रद्धालुओं का गुस्सा भी देखने को मिल रहा है।
शरारती तत्वों द्वारा पथराव
श्री अमरनाथ की पवित्र गुफा की तीर्थयात्रा पर आए श्रद्धालुओं पर हुए पथराव ने शरारती तत्वों व आतंकियों से बचाने के सरकारी दावों की पोल खोल दी है। हालांकि पुलिस अधीक्षक गांदरबल व जिला उपायुक्त गांदरबल दोनों ने ऐसी किसी घटना को सिरे से खारिज कर दिया है।
गौरतलब है कि गत 4 जुलाई को बालटाल से श्रीनगर की तरफ लौट रहे श्रद्धालुओं की दो बसों पर कंगन-सुंबल बाईपास मार्ग पर पथराव हुआ। बस चालकों ने रुकने की बजाय गाडि़यों को तेज गति से भगा लिया, लेकिन इस दौरान पत्थर लगने से गाडि़यों के शीशे टूट गए और छह श्रद्धालुओं को चोटें भी आईं हैं। श्रद्धालुओं ने निकटवर्ती सैन्य शिविर के पास जाकर गाड़ी रुकवाई ताकि घायलों का उपचार हो सके। कंगन पुलिस को भी सूचित किया गया, लेकिन कोई मदद नहीं हुई। जम्मू पहुंचने के बाद घायल श्रद्घालुओं ने अपनी आपबीती बयान की। जम्मू के विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संगठनों ने दोषियों को कठोर दंड देने के साथ यात्रा को सुरक्षित बनाने पर बल दिया। उनका कहना है कि इस तरह की घटनाएं न सिर्फ राज्य में, बल्कि देश के अन्य भागों में भी सांप्रदायिक तनाव का कारण बन सकती हैं। इस बारे में पुलिस अधीक्षक गांदरबल इम्तियाज पर्रे ने बताया कि किसी भी जगह श्रद्धालुओं पर कोई पथराव नहीं हुआ है। किसी ने उनके वाहनों को निशाना नहीं बनाया। पूरे रास्ते में सीआरपीएफए, सेना व पुलिस के जवान तैनात हैं। शरारती तत्वों की लगातार कड़ी निगरानी की जा रही है।
लंगर समितियों को नहंीं मिल रहीं सुविधाएं
देश-विदेश से श्री अमरनाथ यात्रा के लिए आ रहे श्रद्धालुओं को नि:शुल्क लंगर व अन्य सुविधाएं उपलब्ध करा रही लंगर समितियों के सामने आ रही समस्याओं को अभी तक हल नहीं किया जा सका है। लंगर समितियों ने बिजली-पानी की आपूर्ति से लेकर उनके सामान की आवाजाही में आ रही दिक्कतों का जिक्र किया है। समितियों का कहना है कि लंगर लगाने के लिए जिन सुविधाओं की अपेक्षा राज्य सरकार से होती है, वह नहीं मिल पा रही हैं जिसके चलते उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वहीं राज्य के उपमुख्यमंत्री डा़ॅ निर्मल सिंह ने लंगर समितियों के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर उन्हें पेश आ रही सभी प्रकार की समस्याओं को हल करने के निर्देश जारी कर दिए। बलवान सिंह
जम्मू-कश्मीर की सुरम्य पर्वत श्रंृखला में 13500 फुट की ऊंचाई पर आदि-अनादि काल से भगवान शिव हिमलिंग के रूप में श्री अमरनाथ गुफा में विराजमान हैं। श्रावण मास की पूर्णिमा को इसके दर्शन करने का विशेष महत्व है क्योंकि इस स्थान पर भगवान शंकर ने मां पार्वती को भगवान राम के पावन चरित्र की अमर कथा सुनाई थी। इसलिए यहां पर भगवान शिव बाबा अमरनाथ के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस कथा को एक कबूतर के जोड़े ने भी सुना था और ऐसी मान्यता है कि वह जोड़ा भी अमर है, आज भी इस जोड़े के दर्शन कर भक्तजन अपने आप को सौभाग्यशाली मानते हैं।
यह यात्रा देश की कठिन यात्राओं में से एक है। श्री अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं जिनमें एक चंदनबाड़ी से 35 किलोमीटर पैदल मार्ग का रास्ता है जो अत्यंत ही कठिन है। यह बीच-बीच में बहुत संकरा भी है। बर्फ के ग्लेशियर भी आते हैं, नदी पार कर दो दिन में तीर्थयात्री पावन गुफा पर पहुंचते हैं। वहीं दूसरा रास्ता बालटाल से जाता है, जहां से अमरनाथ गुफा जाने के लिए 12 किलोमीटर का ग्लेशियरों से भरा पैदल मार्ग है, जो अत्यंत कठिन होने के साथ-साथ खतरनाक भी है।
श्री अमरनाथ यात्रा हमेशा विवादों में घिरी रही है। कभी आतंकवादियों ने तो कभी अलगाववादियों ने इस यात्रा में बाधा डालने की कोशिश की है। कभी पर्यावरण के नाम पर तो कभी प्रदूषण के नाम पर इस यात्रा में बाधा डालने का प्रयास किया जाता रहा है। श्री अमरनाथ यात्रा शुरू होने से पहले ही अलगाववादी कश्मीर में इस तरह का माहौल बनाना शुरू करते आए हैं ताकि देश के अन्य हिस्सों में यह संदेश जाए कि यात्रा करना सुरक्षित नहीं है और कम से कम यात्री यात्रा पर पहुंच सकें। श्री अमरनाथ यात्रा आंदोलन 2008 इसका प्रमुख उदाहरण है जिसमें न केवल अलगावादियों, बल्कि कश्मीर मूल के राजनीतिक दलों ने भी इसका खुलकर विरोध किया था। हर वर्ष इस यात्रा को प्रभावित करने के उद्देश्य से कश्मीर में ऐसा माहौल बनाया जाता है ताकि यात्रा पर आने वाले यात्रियों को प्रभावित किया जा सके।
श्री अमरनाथ यात्रा 2015 में सरकारी व श्राइन बोर्ड के तौर पर कुछ परिवर्तन देखने को जरूर मिल रहे हैं। इस वर्ष यात्रा में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। सेना, सीआरपीएफ, पुलिस व अन्य सुरक्षा एजेंसियों की तैनाती इस तरह से की गई है कि सुरक्षा में किसी प्रकार की चूक न रह सके। यात्रियों की सुविधा व्यवस्थाओं में भी वृद्धि हुई है, लेकिन विश्व प्रसिद्ध यात्रा होने के कारण बड़ी संख्या में जम्मू पहुंच रहे यात्रियों को फिर भी कई परिशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह इस कदर है कि पहले सप्ताह में ही बाबा के दर्शन करने वाले यात्रियों की संख्या एक लाख से पार पहुंच गई।
पंजीकरण में श्रद्घालुओं को हो रही है दिक्कत
बड़ी संख्या में जम्मू पहुंच रहे श्रद्धालुओं का वर्तमान में पंजीकरण नहीं हो पाने से वे काफी निराश व हताश हैं। पंजीकरण के लिए श्रद्धालुओं की संख्या में दिन-प्रतिदिन वृद्धि दर्ज की जा रही हैं। 2000 से 3000 तक श्रद्धालु प्रतिदिन पंजीकरण करवा रहे हैं, किन्तु हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं जिसके चलते पंजीकरण कोटा कम पड़ रहा है। श्राइन बोर्ड सुरक्षा के लिहाज से प्रतिदिन बालटाल व पहलगाम आधार शिविर से 7500-7500 श्रद्धालुओं को ही यात्रा पर रवाना करता है। ऐसे में यदि एक दिन के लिए 12000 श्रद्धालुओं का पंजीकरण पहले हो चुका है तो फिर शेष तीन हजार का पंजीकरण होगा। पंजीकरण दैनिक कोटे की सीमा पूर्ण रूप से पहले हो चुके पंजीकरण पर निर्भर करती है। यह संख्या हर दिन बढ़ती-घटती रहती है। पंजीकरण के लिए जम्मू हॉट वैष्णवी धाम व सरस्वती धाम पर केन्द्र बनाये गए हैं। यात्रियों की संख्या में वृद्धि होने से पंजीकरण केन्द्रों की कमी महसूस की जा ही है जिसके चलते पंजीकरण करने की होड़ मच गई है। तीनों पंजीकरण केन्द्रों पर लम्बी-लम्बी कतारें देखने को मिल रही हैं और सरकार व बोर्ड के खिलाफ श्रद्धालुओं का गुस्सा भी देखने को मिल रहा है।
शरारती तत्वों द्वारा पथराव
श्री अमरनाथ की पवित्र गुफा की तीर्थयात्रा पर आए श्रद्धालुओं पर हुए पथराव ने शरारती तत्वों व आतंकियों से बचाने के सरकारी दावों की पोल खोल दी है। हालांकि पुलिस अधीक्षक गांदरबल व जिला उपायुक्त गांदरबल दोनों ने ऐसी किसी घटना को सिरे से खारिज कर दिया है।
गौरतलब है कि गत 4 जुलाई को बालटाल से श्रीनगर की तरफ लौट रहे श्रद्धालुओं की दो बसों पर कंगन-सुंबल बाईपास मार्ग पर पथराव हुआ। बस चालकों ने रुकने की बजाय गाडि़यों को तेज गति से भगा लिया, लेकिन इस दौरान पत्थर लगने से गाडि़यों के शीशे टूट गए और छह श्रद्धालुओं को चोटें भी आईं हैं। श्रद्धालुओं ने निकटवर्ती सैन्य शिविर के पास जाकर गाड़ी रुकवाई ताकि घायलों का उपचार हो सके। कंगन पुलिस को भी सूचित किया गया, लेकिन कोई मदद नहीं हुई। जम्मू पहुंचने के बाद घायल श्रद्घालुओं ने अपनी आपबीती बयान की। जम्मू के विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संगठनों ने दोषियों को कठोर दंड देने के साथ यात्रा को सुरक्षित बनाने पर बल दिया। उनका कहना है कि इस तरह की घटनाएं न सिर्फ राज्य में, बल्कि देश के अन्य भागों में भी सांप्रदायिक तनाव का कारण बन सकती हैं। इस बारे में पुलिस अधीक्षक गांदरबल इम्तियाज पर्रे ने बताया कि किसी भी जगह श्रद्धालुओं पर कोई पथराव नहीं हुआ है। किसी ने उनके वाहनों को निशाना नहीं बनाया। पूरे रास्ते में सीआरपीएफए, सेना व पुलिस के जवान तैनात हैं। शरारती तत्वों की लगातार कड़ी निगरानी की जा रही है।
लंगर समितियों को नहंीं मिल रहीं सुविधाएं
देश-विदेश से श्री अमरनाथ यात्रा के लिए आ रहे श्रद्धालुओं को नि:शुल्क लंगर व अन्य सुविधाएं उपलब्ध करा रही लंगर समितियों के सामने आ रही समस्याओं को अभी तक हल नहीं किया जा सका है। लंगर समितियों ने बिजली-पानी की आपूर्ति से लेकर उनके सामान की आवाजाही में आ रही दिक्कतों का जिक्र किया है। समितियों का कहना है कि लंगर लगाने के लिए जिन सुविधाओं की अपेक्षा राज्य सरकार से होती है, वह नहीं मिल पा रही हैं जिसके चलते उन्हें कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वहीं राज्य के उपमुख्यमंत्री डा़ॅ निर्मल सिंह ने लंगर समितियों के पदाधिकारियों के साथ बैठक कर उन्हें पेश आ रही सभी प्रकार की समस्याओं को हल करने के निर्देश जारी कर दिए। बलवान सिंह
यात्रा से पलते हैं हजारों मुसलमान परिवार
समुद्र तल से 3880 फीट की ऊंचाई पर दुर्गम पहाडि़यों में बाबा अमरनाथ के दर्शनों के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की यात्रा मुस्लिम समुदाय के सहयोग के बिना मुश्किल है। वार्षिक अमरनाथ यात्रा सांप्रदायिक सौहार्द की भी प्रतीक बन चुकी है। आस्था के प्रतीक हिमलिंग के दर्शनों के लिए श्रद्धालु बेसब्री से श्री अमरनाथ यात्रा के शुरू होने का इंतजार करते हैं, ठीक उसी तरह कश्मीर संभाग के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग भी इस यात्रा के शुरू होने का इंतजार करते हैं। पिट्ठू, पालकी वाले, खच्चर वाले और दुकानदार एकत्रित होने वाली धनराशि ने समुदाय के लोगों के घर पर वर्ष भर चूल्हा जलता है। इसमें पिट्ठू, , घोड़े वाले तथा दुकानदार शामिल हैं।
श्री अमरनाथ यात्रा के दौरान पवित्र हिमलिंग की पूजा अर्चना के लिए प्रयोग होने वाली सामग्री को स्थानीय मुस्लिम उपलब्ध करवाते हैं। गुफा के पास टेंट लगा कर श्रद्धालुओं के ठहरने का बंदोबस्त भी मुस्लिम समुदाय के लोग करते हैं। श्रद्धालुओं को पवित्र गुफा तक पहुंचाने के लिए उपलब्ध घोड़े तथा पालकी उठाने वाले कंधे मुसलमानों के हैं।
समुद्र तल से 3880 फीट की ऊंचाई पर दुर्गम पहाडि़यों में बाबा अमरनाथ के दर्शनों के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की यात्रा मुस्लिम समुदाय के सहयोग के बिना मुश्किल है। वार्षिक अमरनाथ यात्रा सांप्रदायिक सौहार्द की भी प्रतीक बन चुकी है। आस्था के प्रतीक हिमलिंग के दर्शनों के लिए श्रद्धालु बेसब्री से श्री अमरनाथ यात्रा के शुरू होने का इंतजार करते हैं, ठीक उसी तरह कश्मीर संभाग के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग भी इस यात्रा के शुरू होने का इंतजार करते हैं। पिट्ठू, पालकी वाले, खच्चर वाले और दुकानदार एकत्रित होने वाली धनराशि ने समुदाय के लोगों के घर पर वर्ष भर चूल्हा जलता है। इसमें पिट्ठू, , घोड़े वाले तथा दुकानदार शामिल हैं।
श्री अमरनाथ यात्रा के दौरान पवित्र हिमलिंग की पूजा अर्चना के लिए प्रयोग होने वाली सामग्री को स्थानीय मुस्लिम उपलब्ध करवाते हैं। गुफा के पास टेंट लगा कर श्रद्धालुओं के ठहरने का बंदोबस्त भी मुस्लिम समुदाय के लोग करते हैं। श्रद्धालुओं को पवित्र गुफा तक पहुंचाने के लिए उपलब्ध घोड़े तथा पालकी उठाने वाले कंधे मुसलमानों के हैं।
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