पंद्रह वर्ष की अल्प वय में
देश भक्ति का गान किया
आज़ादी को पाने हेतु
क्रांति पथ आह्वान किया
विपदाओं की जंजीरे
बिछी पड़ी थीं राहों में
खुद पर खूब भरोसा था
बल था बहुत भुजाओ में
खून ख़ौलता रगो में
सीने में उठता शोला था
पीड़ाओं के दंश झेलते
वंदे मातरम् बोला था
गर्जन करता प्रलय मेघ सा
परंपरा था शेरों की
नाम सुनकर 'आजाद'
देह काँपती गोरों की
मूँछों पर ताव देकर
अंग्रेजो को ललकार दिया
आजाद ने आजाद रहने को
स्वयम मृत्यु का सत्कार किया
धन्य किया महा मानव ने
पुण्य धरा की माटी को
ज़िंदा रखा जीवन देकर
बलिदानी परिपाटी को
आज़ाद हूँ आजाद रहूँगा
दिया आजादी का नारा
गर्वित है उस नर नाहर पर
हिन्दुस्तान हमारा
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