वन्दे मातरम
जरा सुनो ओ रोने वालो वन्दे मातरम नारे पर,
करो याद, था बना पाक, निज लहू मांस के गारे पर।
मां पुत्रो से दूर रहे पर मां फिर भी मां रहती है,
खून आँख में, दिल में अग्नि सदा धधकती रहती है
एक दाहिर की गौरव गाथा, याद सदा ही रहती है,
देश कटा, पर घाव से अब तक खूनी धारा बहती है।
उठो आज तुम आग लगा दो इनके चाँद सितारे पर॥
कैसे भूल जाये हम सिन्धु, रावी वहीँ, चिनाब वहीँ,
वहीँ तो झेलम खेल रही है, हिन्दू कुश है खड़ा वहीँ
लव कुश का लाहौर वहीँ, गांधारी का गंधार वहीँ,
पौरष की गौरव गाथाएं, शल्य का ईरान वहीँ।
नहीं खटकता तुमको परचम उड़ता देश हमारे पर ?
बड़ी सुनी निज इतिहासों की तुमने खूनी गाथाएं,
जौहर को मजबूर पदमिनी, विधवा बहने माताएं,
क्योंकर हिंदुस्तान हमेशा कालकूट पीता जाये,
क्यों न कदम बढ़ा गजनी तक लोहित सागर लहराएँ।
उठो मिटा दो काले धब्बे, जो इतिहास हमारे पर।
खूब सहा है अब तक तुमने इनके खुनी वारो को,
खूब सहा है, अब तक तुमने इन खुनी प्रहारों को,
पाठ पढ़ा दो रक्तपात का इन खूनी हत्यारों को,
उठो गूंजा दो कण कण में अब गांडीव की टंकारो को।
उठो तजो तन मन धन जीवन श्री राम के द्वारे पर ॥
मक्का और मदीना को पल में हासिल करने वालो,
कान खोल कर सुन लो ओ अल्लाह का दम भरने वालो,
तुर्की, अरब, इरान देश को इस्लामी रंगने वालो,
पुर्तगाल स्पेन सीरिया को जर्जर करने वालो,
न चमका, न चमकेगा, यह परचम देश हमारे पर।।
मक्का और मदीना पर जिस दिन भगवा लहराएगा,
रोम और येरुशलम पर जब भगवा शान दिखायेगा,
शोर्य हीन नहीं हिन्दू है यह हिन्दू तुम्हे बताएगा,
मुंड गिरेंगे कट कट कर जब, जगत जान यह जायेगा।
हिन्दू है हुंकार रहा मां वसुधा के हुंकारे पर ॥
जब जब राष्ट्र पड़ा संकट में, भारत भू हुंकार उठी,
भूल गए जब सिन्धु तट पर इन यवनों को मार पड़ी,
फारस तट पर मिहिरभोज के घोड़ो की पद चाप पड़ी,
भूल गए बाप्पा रावल की अरबो पर तलवार पड़ी।
नागभट्ट बन नाग था लिपटा इनके चाँद सितारे पर॥
भूल गए रणजीत सिंह को, भूल गए हो नलूवे को,
महाराणा की मार भूल गए , सिंह गढ़ी के बदले को,
आलमगीरी नाक के नीचे छत्रसाल के बलवे को,
औरंगजेब सदा रोया खा गरम मराठी हलवे को,
भूले क्रीडा वीर शिवा की, इस्लामी चौबारे पर॥
समुन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त व् भीमसेन को याद करो,
भूल युधिष्टर और विभीषण, अब अर्जुन का ध्यान धरो,
महावीर को, गौतम बुद्ध को, दीवारों तक रहने दो,
वीर उठा शमशीर, तीर, अब सेनानी प्रयाण करो.
बढ़ कर ध्वज फहरा दो अपना भग्वा बलख बुखारे पर॥
राम द्रोही व् राष्ट्र द्रोही कों न जिन्दा रहने देंगे,
भारत माँ कों डायन तो अब हरगिज न कहने देंगे,
वन्दे मातरम की ध्वनी सुन जिनके सर झुक जाते है,
उन गद्दारों के मस्तक हम सागर में लुड़का देंगे।
चलो वीर अब वज्र चला दे इस झूठे बटवारे पर।
जरा सुनो ओ रोने वालो वन्दे मातरम नारे पर,
करो याद, था बना पाक, निज लहू मांस के गारे पर।
मां पुत्रो से दूर रहे पर मां फिर भी मां रहती है,
खून आँख में, दिल में अग्नि सदा धधकती रहती है
एक दाहिर की गौरव गाथा, याद सदा ही रहती है,
देश कटा, पर घाव से अब तक खूनी धारा बहती है।
उठो आज तुम आग लगा दो इनके चाँद सितारे पर॥
कैसे भूल जाये हम सिन्धु, रावी वहीँ, चिनाब वहीँ,
वहीँ तो झेलम खेल रही है, हिन्दू कुश है खड़ा वहीँ
लव कुश का लाहौर वहीँ, गांधारी का गंधार वहीँ,
पौरष की गौरव गाथाएं, शल्य का ईरान वहीँ।
नहीं खटकता तुमको परचम उड़ता देश हमारे पर ?
बड़ी सुनी निज इतिहासों की तुमने खूनी गाथाएं,
जौहर को मजबूर पदमिनी, विधवा बहने माताएं,
क्योंकर हिंदुस्तान हमेशा कालकूट पीता जाये,
क्यों न कदम बढ़ा गजनी तक लोहित सागर लहराएँ।
उठो मिटा दो काले धब्बे, जो इतिहास हमारे पर।
खूब सहा है अब तक तुमने इनके खुनी वारो को,
खूब सहा है, अब तक तुमने इन खुनी प्रहारों को,
पाठ पढ़ा दो रक्तपात का इन खूनी हत्यारों को,
उठो गूंजा दो कण कण में अब गांडीव की टंकारो को।
उठो तजो तन मन धन जीवन श्री राम के द्वारे पर ॥
मक्का और मदीना को पल में हासिल करने वालो,
कान खोल कर सुन लो ओ अल्लाह का दम भरने वालो,
तुर्की, अरब, इरान देश को इस्लामी रंगने वालो,
पुर्तगाल स्पेन सीरिया को जर्जर करने वालो,
न चमका, न चमकेगा, यह परचम देश हमारे पर।।
मक्का और मदीना पर जिस दिन भगवा लहराएगा,
रोम और येरुशलम पर जब भगवा शान दिखायेगा,
शोर्य हीन नहीं हिन्दू है यह हिन्दू तुम्हे बताएगा,
मुंड गिरेंगे कट कट कर जब, जगत जान यह जायेगा।
हिन्दू है हुंकार रहा मां वसुधा के हुंकारे पर ॥
जब जब राष्ट्र पड़ा संकट में, भारत भू हुंकार उठी,
भूल गए जब सिन्धु तट पर इन यवनों को मार पड़ी,
फारस तट पर मिहिरभोज के घोड़ो की पद चाप पड़ी,
भूल गए बाप्पा रावल की अरबो पर तलवार पड़ी।
नागभट्ट बन नाग था लिपटा इनके चाँद सितारे पर॥
भूल गए रणजीत सिंह को, भूल गए हो नलूवे को,
महाराणा की मार भूल गए , सिंह गढ़ी के बदले को,
आलमगीरी नाक के नीचे छत्रसाल के बलवे को,
औरंगजेब सदा रोया खा गरम मराठी हलवे को,
भूले क्रीडा वीर शिवा की, इस्लामी चौबारे पर॥
समुन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त व् भीमसेन को याद करो,
भूल युधिष्टर और विभीषण, अब अर्जुन का ध्यान धरो,
महावीर को, गौतम बुद्ध को, दीवारों तक रहने दो,
वीर उठा शमशीर, तीर, अब सेनानी प्रयाण करो.
बढ़ कर ध्वज फहरा दो अपना भग्वा बलख बुखारे पर॥
राम द्रोही व् राष्ट्र द्रोही कों न जिन्दा रहने देंगे,
भारत माँ कों डायन तो अब हरगिज न कहने देंगे,
वन्दे मातरम की ध्वनी सुन जिनके सर झुक जाते है,
उन गद्दारों के मस्तक हम सागर में लुड़का देंगे।
चलो वीर अब वज्र चला दे इस झूठे बटवारे पर।
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